उत्तराखंड में दिवाली से पहले घरों में बनते हैं ऐपण, जानें इसकी खासियत..

उत्तराखंड में दिवाली से पहले घरों में बनते हैं ऐपण, जानें इसकी खासियत..

 

उत्तराखंड: दीपावली में उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में ऐपण बनाए जाते हैं। जिन्हें बेहद ही शुभ माना जाता है। ऐपण उत्तराखंड की लोक कला है जो कि उत्तराखंड की बहुमूल्य धरोहर है। गेरू के ऊपर चावल के बिस्वार यानी पिसे चावलों के घोल से उंगलियों की मदद से बनाई गई आकृतियों को ऐपण कहा जाता है। दीपावली पर घरों की देहरी, मंदिरों और दीवारों पर गेरू के ऊपर चावल के बिस्वार से ऐपण को बनाया जाता है।

क्या है ऐपण कला ?
उत्तराखंड में शुभ अवसरों और त्योहारों पर ऐपण घरों के मुख्य द्वार और मंदिरों में बनाना शुभ माना जाता है। गेरू और चावल के बिस्वार की मदद से देवी देवताओं के आसन, पीठ वगैरह ऐपण में अंकित किए जाते हैं। अलग-अलग शुभ-अवसरों, मंगलकार्यों और देवपूजन के लिए ऐपण के रूप भी बदलते जाते हैं। जिनमें से कुछ भद्र ऐपण, नवदुर्गा चौकी, शिव पीठ ऐपण, लक्ष्मी पीठ ऐपण, कन्यादान चौकी, वसोधरा ऐपण, लक्ष्मी आसन ऐपण, चामुंडा हस्त चौकी, जन्मदिन चौकी, सरस्वती चौकी, लक्ष्मी पग आदि है।

ऐपण साधारण कला या रंगोली न होकर है एक आध्यात्मिक कला
बदलते समय के साथ ऐपण में तो कोई बदलाव नहीं आया पर बाज़ारीकरण के चलते आज गेरू और चावल की जगह लाल सफ़ेद पेंट और ब्रश ने ले ली है। इसके साथ ही ऐपण का मुद्रित रूप भी अब हमें बाज़ारों में देखने को मिल जाता है। ऐपण कपड़ों पे भी किया जाता है।इसका मुख्य उदाहरण है रंगवाली पिछौड़ी, पहले ये पिछोड़ियां भी हाथ से बनाई जाती थी। लेकिन आज बाजार प्रिंटेड पिछौड़ियों से लदा हुआ है। जिस कारण हस्त निर्मित रंगवाली पिछौड़ी अब बहुत देखने को नहीं मिलती हैं। लेकिन बागेश्वर में आधुनिकता के इस दौर में भी कुछ परिवार हाथ से रंगी पिछौड़ी बनाते हैं। ऐपण उत्तराखंड की पौराणिक कला है जिसमें अंकित चित्रों की मदद से सकारात्मक शक्तियों का आह्वान किया जाता है।

ऐपण कला का तंत्र-मंत्र से सम्बन्ध
ऐपण को सिर्फ एक रेखा चित्र समझने की भूल मत करना। ये उत्तराखंड की ऐसी अल्पनाएं हैं जिसकी मदद से नकारात्मक ऊर्जाएं घर से दूर रहती हैं। ऐपण का सीधा संबंध तंत्र-मंत्र से है। यूरोप में प्रेत अवरोधों को दूर करने के लिए ऐसी ही अल्पनाओं जिन्हें पोंटोग्राम कहते हैं इनका उपयोग किया जाता है।

तिब्बत में भूत-प्रेतों से छुटकारा पाने के लिए धरती पर अल्पनाएं बनाई जाती हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में किनलोर कहा जाता है। यहूदी धर्म में भी ऐसी अल्पनाएं बनाई जाती हैं जिसका उद्देश्य नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलना होता है। कहा जाता है कि जीवन ऊर्जा का महासागर है। जब अंतरात्मा जाग्रत होती है तो ऊर्जा जीवन को कला के रूप में उभारती है और आत्मा की शक्ति या उर्जा के महत्व को हर क्षेत्र में जुड़ी अल्पनाओं में स्वीकारा गया है।

सकारात्मकता को अपनी ओर अट्रैक्ट करते हैं ऐपण
ऐपण सकारात्मकता को अपनी ओर अट्रैक्ट करती है और शायद यही वजह है कि इन अल्पनाओं को देख कर शरीर में एक अलग ही उत्साह आ जाता है। बदलते समय के साथ ऐपण कला का मुद्रित रूप बाजार में आ रहा है जो शायद कभी वो आध्यात्मिक शक्ति प्रदान कर ही नहीं सकता जिसकी वजह से अल्पनाएं इतिहास में ही कहीं खोती चली जा रही हैं।कुमाऊं में शुभ कार्यों पर ऐपण बनाए जाते हैं। लेकिन दीपावली से पहले आपको हर घर में ऐपण बनते हुए मिल जाएंगे। दीपावली पर ऐपण बनाने के लिए लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है। दीपावली से कुछ दिन पहले से ही मंदिरों, देहरी, दीवारों, ओखली को ऐपण से सजाना शुरू हो जाता है।