दुनिया भर में प्रसिद्ध है देवभूमि उत्तराखंड की ये होली..

दुनिया भर में प्रसिद्ध है देवभूमि उत्तराखंड की ये होली..

 

 

 

उत्तराखंड: देश में होली के रंगों की धूम मची हुई है। साल भर हर एक शख्स इस रंगों के त्यौहार का बड़ी बेसबरी से इंतजार करता है। यहां हर जगह होली अलग अलग तरीके से मनाई जाती है। कहीं लठमार होली होती है तो कहीं फूलों की होली खेली जाती है। उत्तराखंड की खड़ी और बैठकी होली देशभर में मशहूर है। देश के कई स्थानों की होली ना केवल विशेष महत्व रखती है बल्कि ये निराले अंदाज में भी मनाई जाती है। ऐसी ही विशेष होली देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाई जाती है। जहां होली सिर्फ रंगों से नहीं बल्कि रागों से भी खेली जाती है। कुमाऊं की होली का समृद्ध इतिहास 400 सालों से भी ज्यादा पुराना है।

देश के कई स्थानों की होली ना केवल विशेष महत्व रखती है बल्कि ये निराले अंदाज में भी मनाई जाती है। ऐसी ही विशेष होली देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाई जाती है। जहां होली सिर्फ रंगों से नहीं बल्कि रागों से भी खेली जाती है। कुमाऊं की होली का समृद्ध इतिहास 400 सालों से भी ज्यादा पुराना है।चीर बंधन के बाद कुमाऊं के हर घर में आए दिन होली के गीत गाए जाते हैं। जिसकी शुरूआत गांव के मंदिर से होती है। कुमाऊं में बैठकी होली, पौष माह के पहले रविवार से ही शुरू हो जाती है। बैठकी होली को कुमाऊंनी होली का सबसे लोकप्रिय रूप माना जाता है। इसमें रात को संगीत सभाएं लगती हैं और स्वांग के बिना तो ये होली अधूरी मानी जाती है।

कुमाऊं में एकादशी की शुरूआत से गांवों में ढोल झांझर और कदमों की खास ताल से खड़ी होली का गायन शुरू हो जाता है। चीर बंधन के साथ शिव स्तुति से खड़ी होली का गायन शुरू होता है। ढोल नगाड़ों की थाप पर धुन, लल और ताल के साथ नृत्य करते लोग ही इस होली का मुख्य आकर्षण होते हैं।बैठकी होली की तरह ही यहां महिला होली भी मनाई जाती है। जहां महिलाओं की बैठकें लगती हैं। जिसमें गीत-संगीत सिर्फ महिलाओं पर ही आधारित होते हैं। राग-दादरा और राग कहरवा में गाए जाने वाले कुमाऊंनी होली में राधा कृष्ण, राजा हरिशचन्द्र, श्रवण कुमार सहित रामायण और महाभारत काल की गाथाओं का वर्णन भी किया जाता है।