उत्तराखंड के शहरों में पहली बार उतरेगी मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनें, धूल प्रदूषण पर लगेगी लगाम..

उत्तराखंड के शहरों में पहली बार उतरेगी मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनें, धूल प्रदूषण पर लगेगी लगाम..

 

 

उत्तराखंड: शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता और प्रदूषण नियंत्रण को नई दिशा देने के लिए उत्तराखंड में पहली बार मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनों को लाने की तैयारी की जा रही है। भारत सरकार की मदद से यह पहल शुरू की जा रही है, जिसके जरिए सड़कों पर जमी धूल को नियंत्रित करने और वायु प्रदूषण को कम करने का दावा किया जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार इस योजना के पहले चरण में देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर को चुना गया है। इन शहरों में जल्द ही मशीनें सड़क पर उतरेंगी और नियमित सफाई व्यवस्था में शामिल होंगी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि आने वाले समय में राज्य के अन्य शहरों में भी इसी तरह की मशीनों को लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनों के आने से शहरी इलाकों की सड़कों पर फैली धूल कणों की समस्या काफी हद तक नियंत्रित होगी। इससे न केवल स्वच्छता व्यवस्था मजबूत होगी बल्कि प्रदूषण के स्तर में भी कमी आएगी। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम खासतौर पर सांस संबंधी बीमारियों और प्रदूषण से जुड़े खतरों को कम करने में सहायक साबित हो सकता है। सरकारी अधिकारियों का दावा है कि इस पहल से राज्य की छवि स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त शहरों की ओर बढ़ेगी, जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

उत्तराखंड में शहरी स्वच्छता और प्रदूषण नियंत्रण को नई दिशा देने के लिए बड़ा कदम उठाया जा रहा है। राजधानी देहरादून, योग नगरी ऋषिकेश और कुमाऊं के काशीपुर में अब अत्याधुनिक मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनें सड़कों पर उतरने जा रही हैं। यह मशीनें न केवल सड़क की सफाई करेंगी बल्कि वातावरण में फैलने वाले धूल कणों को भी रोकेंगी। अधिकारियों के अनुसार यह पहली बार है जब राज्य में इस तरह की आधुनिक मशीनों को इंट्रोड्यूस किया जा रहा है। इन मशीनों की सबसे खास बात यह है कि ये सड़क पर जमी बारीक धूल को भी अपने भीतर समेटकर निर्धारित जगह पर डंप करेंगी। इससे वातावरण में मौजूद PM 10 कणों की मात्रा में कमी आने की उम्मीद जताई जा रही है। यह पहल प्रदूषण और सांस संबंधी बीमारियों को रोकने में मददगार साबित हो सकती है। फिलहाल यह योजना पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर तीन शहरों में शुरू की जा रही है, लेकिन सफलता मिलने पर इसे राज्य के अन्य शहरी क्षेत्रों तक विस्तार दिया जाएगा।

मैकेनिकल स्वीपिंग मशीन पूरी तरह ऑटोमेटिक तकनीक पर काम करती है। यह चलते-चलते धूल को सोख लेती है। उसे सुरक्षित रूप से स्टोर कर देती है।देश के कई बड़े शहर जैसे दिल्ली और इंदौर पहले ही इन मशीनों का सफलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं। वहां धूल प्रदूषण में सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं। अब उत्तराखंड भी इस तकनीक को अपनाने जा रहा है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव पराग मधुकर धकाते बताते है कि इस मशीन से सड़क धूल और अन्य ठोस कचरे को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकेगा। शहरों में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए यह कदम बेहद महत्वपूर्ण है। माना जा रहा है कि मशीनों के उपयोग से वातावरण की गुणवत्ता पर प्रत्यक्ष असर दिखेगा। लोगों को स्वच्छ हवा मिलेगी।

राजधानी देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर में पहले चरण के तहत मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनें चलाई जाएंगी। यह मशीनें चलते-चलते सड़कों की धूल सोखकर उसे सुरक्षित तरीके से स्टोर करेंगी और वातावरण में कणों को जाने से रोकेंगी। दूसरे चरण में राज्य के अन्य बड़े शहरों को भी इस सुविधा से जोड़ा जाएगा। विशेष रूप से हल्द्वानी और हरिद्वार को प्राथमिकता दी गई है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और शहरी विकास विभाग ने संयुक्त रूप से योजना बनाई है कि आने वाले वर्षों में प्रदेश के सभी प्रमुख नगरों में ऐसी मशीनें उपलब्ध कराई जाएं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव पराग मधुकर धकाते ने बताया कि इस तकनीक से सड़कों पर जमी धूल और ठोस कचरे को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकेगा। उनका कहना है कि यह कदम न केवल साफ-सफाई बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से भी मील का पत्थर साबित होगा। दिल्ली और इंदौर जैसे बड़े शहरों में पहले ही इन मशीनों का सफल उपयोग हो चुका है और वहां धूल प्रदूषण में सकारात्मक बदलाव दर्ज किए गए हैं। उम्मीद है कि उत्तराखंड में भी इस पहल से शहरी इलाकों की स्वच्छता व्यवस्था मजबूत होगी और लोगों को धूल प्रदूषण से राहत मिलेगी।