16-17 जून 2013 — एक तारीख जिसने केदारनाथ की पवित्र धरती को झकझोर कर रख दिया। चोराबाड़ी झील के टूटने से आई भयंकर बाढ़ और भूस्खलन ने मंदाकिनी घाटी का नक्शा ही बदल दिया था। सैकड़ों लोगों की जानें गईं, हज़ारों घर उजड़ गए और पूरी केदारपुरी मलबे में दबी हुई थी।
लेकिन आज, 12 साल बाद, केदारनाथ फिर से संकल्प, श्रद्धा और संजीवनी का प्रतीक बन गया है। जहां एक समय सन्नाटा था, वहां अब श्रद्धालुओं की भीड़ और भगवान शिव के जयकारों की गूंज सुनाई देती है।
पुनर्निर्माण से मिली नई पहचान
2013 की आपदा के बाद, केदारनाथ धाम को फिर से संजीवनी देने का बीड़ा उठाया गया। 2014 में कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय कोठियाल और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) की टीम ने सबसे पहले पहुंच मार्ग बनाने की चुनौती को स्वीकारा। मंदाकिनी नदी के किनारे नौ किलोमीटर लंबा नया ट्रैक तैयार किया गया, जिसके बाद हेलिपैड, आवास, सुरक्षात्मक दीवारें जैसे अहम निर्माण कार्य शुरू हुए।
2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पुनर्निर्माण को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल किया। अब तीन चरणों में लगभग 500 करोड़ रुपये की लागत से मंदिर परिसर का विस्तार, शंकराचार्य समाधि का पुनर्निर्माण, तीर्थपुरोहितों के भवन, सुरक्षा दीवारें और आधुनिक यात्री सुविधाएं विकसित की जा रही हैं।
यात्रा को मिला नया आयाम
2014 में जहां यात्रा की संख्या 48 हजार तक सिमटी थी, वहीं श्रद्धालुओं का विश्वास लौटते ही यह आंकड़ा 2019 में 10 लाख, 2022 में 15 लाख, और 2023 में 19 लाख के पार पहुंच गया। 2024 में अब तक 16 लाख से अधिक तीर्थयात्री बाबा केदार के दर्शन कर चुके हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है।
दर्द के निशान अभी भी बाकी हैं
हालांकि मंदिर नगरी फिर से बस चुकी है, पर आपदा के जख्म अब भी हरे हैं। कई बुजुर्ग आज भी अकेले जीवन काट रहे हैं। राहत और पुनर्वास के कई वादे अब तक अधूरे हैं। पुराना पैदल मार्ग आज भी बहाली के इंतज़ार में है, और वैकल्पिक रूट्स पर ठोस योजना नहीं बनी है।
आशा की नई किरण — आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ती महिलाएं
आपदा की चपेट में आई महिलाओं ने हार नहीं मानी। कढ़ाई-बुनाई, हस्तशिल्प और स्थानीय उत्पादों के ज़रिए वे न केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि क्षेत्र की आर्थिकी को भी संबल दे रही हैं।
केदारपुरी — पुनर्जन्म की प्रेरणा
आज केदारनाथ सिर्फ एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि एक प्रेरणा का प्रतीक है — कि कैसे किसी भी आपदा से उठकर फिर जीवन को नई दिशा दी जा सकती है। यह यात्रा है मलबे से मंदिर तक, सन्नाटे से श्रद्धा तक और भय से भरोसे तक।