राज्यपाल से ना मिलने पर कांग्रेस का धरना उग्र, पुलिस और कार्यकर्ताओं में तनातनी
उत्तराखंड: उत्तराखंड में पंचायत चुनावों को लेकर कांग्रेस का विरोध अब सड़कों तक पहुंच गया है। राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका और चुनाव में कथित अनियमितताओं के खिलाफ लगातार आवाज उठा रही कांग्रेस ने गुरुवार को एक बड़ा कदम उठाया। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ता उस समय राजभवन के गेट पर धरने पर बैठ गए, जब उन्हें राज्यपाल से मुलाकात का समय नहीं मिला। कांग्रेस पार्टी बीते कई दिनों से राज्यपाल से मिलने के लिए लगातार समय मांग रही थी, ताकि पंचायत चुनावों में कथित गड़बड़ियों और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा सकें। लेकिन बार-बार आग्रह के बावजूद राजभवन की ओर से उन्हें समय नहीं दिया गया। प्रदेश कांग्रेस ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं सुनी गईं तो वे पूरे राज्य में विस्तृत जनआंदोलन शुरू करेंगे और राज्य निर्वाचन आयोग के खिलाफ जिलावार प्रदर्शन करेंगे। उत्तराखंड की सियासत में पंचायत चुनाव अब राजनीतिक संघर्ष का बड़ा मुद्दा बनते जा रहे हैं, और कांग्रेस का यह विरोध आगे और भी व्यापक रूप ले सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा का कहना हैं कि वह खुद कई बार राज्यपाल से मिलने का आग्रह कर चुके थे, लेकिन उन्हें जानबूझकर अनसुना किया गया। उपेक्षा से नाराज़ होकर उन्होंने अपने साथियों के साथ राजभवन के मुख्य गेट के सामने धरना शुरू कर दिया और विरोध दर्ज कराया।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को राजभवन गेट पर धरना दिया, जब राज्यपाल से समय नहीं मिलने पर पार्टी ने यह कदम उठाया। कांग्रेस लंबे समय से चुनावों में कथित अनियमितताओं और राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका को लेकर राज्यपाल से मिलने का प्रयास कर रही थी। धरने की सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन में हलचल मच गई। कुछ ही देर में मौके पर पहुंची पुलिस ने करन माहरा सहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी बहस और नोंकझोंक भी देखने को मिली। हिरासत में लिए गए नेताओं को पुलिस गाड़ियों में बैठाकर सीधे पुलिस लाइन भेज ले गई।कांग्रेस का कहना है कि पंचायत चुनावों में बीजेपी सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग की मिलीभगत से लोकतंत्र को ठेस पहुंचाई जा रही है। विपक्ष की आवाज को दबाया जा रहा है, जबकि वे संविधान के तहत राज्यपाल से मिलकर अपनी बात रखना चाहते थे। यह अलोकतांत्रिक है कि एक विपक्षी दल को अपनी बात कहने तक की अनुमति नहीं दी जा रही।