अल्मोड़ा में सम्पन्न हुआ ऐतिहासिक नंदा देवी मेला, मां नंदा-सुनंदा की विदाई पर भावुक हुए श्रद्धालु..

अल्मोड़ा में सम्पन्न हुआ ऐतिहासिक नंदा देवी मेला, मां नंदा-सुनंदा की विदाई पर भावुक हुए श्रद्धालु..

 

 

 

उत्तराखंड: उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नंदा देवी का ऐतिहासिक मेला इस बार भी भव्य शोभायात्रा के साथ संपन्न हुआ। धार्मिक आस्था और लोक परंपराओं से सराबोर इस आयोजन में हजारों श्रद्धालुओं ने मां नंदा-सुनंदा के दर्शन कर सुख-समृद्धि की कामना की। मां के जयकारों से पूरा नगर गूंज उठा और वातावरण भक्तिमय हो गया। मां नंदा-सुनंदा की विदाई के क्षणों में माहौल भावुक हो गया। श्रद्धालुओं की आंखें नम थीं, लेकिन मातृशक्ति के प्रति अगाध आस्था और भक्ति हर चेहरे पर साफ झलक रही थी। बड़ी संख्या में दूर-दराज़ से आए श्रद्धालुओं ने न केवल मां की प्रतिमाओं के दर्शन किए, बल्कि पारंपरिक शोभायात्रा का हिस्सा बनकर स्थानीय लोकसंस्कृति और धार्मिक परंपरा को भी आत्मसात किया। शोभायात्रा का डोला सायं 4 बजे नंदा देवी मंदिर से प्रारंभ होकर लाला बाजार, बंसल गली होते हुए माल रोड पहुंचा। यहां स्थित जीजीआईसी मंदिर परिसर में मां की भव्य आरती की गई। इसके बाद यात्रा सीढ़ी बाजार, कचहरी बाजार और थाना बाजार से होते हुए दुगालखोला पहुंची, जहां श्रद्धालुओं ने मां को अंतिम बार नमन किया। मेले के दौरान नगर की गलियां भक्तिमय गीतों, पारंपरिक वाद्ययंत्रों और मां के जयकारों से गूंजती रहीं। लोगों ने इसे न केवल धार्मिक आस्था का पर्व, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव भी बताया।

उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में आयोजित नंदा देवी का ऐतिहासिक मेला शुक्रवार को मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ सम्पन्न हो गया। इस अवसर पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी और मां के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। मां नंदा-सुनंदा की मूर्तियों का विसर्जन नगर के नौला में किया गया। इससे पहले मां की भव्य आरती की गई और हजारों श्रद्धालुओं ने दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। विधि-विधान के साथ मूर्तियों का विसर्जन होते ही श्रद्धालु भावुक हो उठे। विसर्जन के बाद बड़ी संख्या में भक्त नंदा देवी मंदिर पहुंचे और वहां पूजा-अर्चना कर अपनी आस्था प्रकट की।

अल्मोड़ा में नंदा देवी मेला हर वर्ष भाद्र मास की पंचमी से प्रारंभ होता है। षष्ठी तिथि पर कदली वृक्षों (केले के पेड़) को आमंत्रित करने की परंपरा निभाई जाती है। सप्तमी की सुबह इन कदली वृक्षों को नंदा देवी मंदिर परिसर में लाकर स्थानीय कलाकारों द्वारा मां नंदा एवं सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण किया जाता है।अष्टमी और नवमी पर विशेष पूजा-अर्चना आयोजित होती है। वहीं दशमी के दिन मां की भव्य शोभायात्रा नगरभर में निकाली जाती है, जिसमें दूर-दराज़ से आए श्रद्धालु शामिल होते हैं। मेले के दौरान नगर की गलियां मां की आराधना, पारंपरिक वाद्ययंत्रों और लोकगीतों से गूंज उठीं। श्रद्धालुओं ने कहा कि यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि अल्मोड़ा की सांस्कृतिक पहचान भी है, जो पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को जीवंत बनाए हुए है।

नंदा देवी का यह मेला अल्मोड़ा में चंद वंश के शासनकाल से आयोजित होता आ रहा है। परंपरा के अनुसार आज भी इस मेले में चंद वंशज विशेष पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं। यही नहीं, इस मेले की गरिमा और आस्था के चलते दूर-दराज़ से हजारों श्रद्धालु अल्मोड़ा पहुंचते हैं। कुमाऊं क्षेत्र में मां नंदा-सुनंदा को कुलदेवी के रूप में पूजने की परंपरा है। यही वजह है कि मेले के दौरान श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। विसर्जन को स्थानीय लोग अपनी बेटी की विदाई के समान मानते हैं। नंदा अष्टमी के दिन अल्मोड़ा स्थित नंदा देवी मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ लग जाती है। ब्रह्म मुहूर्त में मां नंदा-सुनंदा की मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है और उसके बाद उनके डोले को मंदिर प्रांगण में दर्शनार्थ रखा जाता है। इसके उपरांत नगर में मां की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें पारंपरिक वाद्ययंत्रों, लोकगीतों और जयकारों के बीच बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। डोले की विदाई के समय का दृश्य बेहद भावुक कर देने वाला होता है, जब भक्त मां को अपनी बेटी की तरह ससुराल विदा करते हैं। मेले के दौरान पूरा नगर श्रद्धा और भक्ति में डूबा नजर आता है। मां नंदा सुनंदा के प्रति अपार आस्था ही इस मेले को न सिर्फ अल्मोड़ा बल्कि पूरे उत्तराखंड का सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव बना देती है।