नदियों के जाल पर नहीं बन पाया उत्तराखंड जल विद्युत में सरताज..

नदियों के जाल पर नहीं बन पाया उत्तराखंड जल विद्युत में सरताज..

 

उत्तराखंड: ऊर्जा प्रदेश का सपना देखने वाला उत्तराखंड भले ही नदियों से भरपूर हो लेकिन यहां जल विद्युत उत्पादन अभी तक लक्ष्य के सापेक्ष एक चौथाई भी नहीं हो पाया है। बिजली की बढ़ती मांग के बावजूद आज भी 20 हजार मेगावाट क्षमता के मुकाबले बमुश्किल 3900 मेगावाट तक उत्पादन हो रहा है।

प्रदेश में रोजाना औसत 4.5 करोड़ यूनिट बिजली की मांग के सामने अभी तक उत्पादन का रुख बेहद सुस्त है। वैसे तो वर्ष 2028 तक 1500 मेगावाट बिजली उत्पादन का सपना देखा गया है। उसी हिसाब से हाइड्रो पावर पॉलिसी में बदलाव करते हुए इसे और नरम भी बनाया गया है। लेकिन प्रदेश की स्थापना के 23 साल इस क्षेत्र में कोई खास उत्साहजनक रुझान नजर नहीं आते।

केंद्रीय पूल से राज्य को 12 प्रतिशत के हिसाब से रोजाना 2.3 करोड़ यूनिट तक बिजली मिलती है और राज्य पूल यानी यूजेवीएनएल से बमुश्किल 1.6 करोड़ यूनिट तक बिजली ही मिल पाती है। इस तरह यूपीसीएल रोजाना बाजार से 80 लाख से एक करोड़ यूनिट तक औसत बिजली खरीदता है, जिस पर सालभर में करोड़ों का खर्च आता है, जिसकी भरपाई टैरिफ से महंगी बिजली के रूप में उपभोक्ताओं से की जाती रही है।

पर्यावरणीय बंदिशों में फंसी 2200 मेगावाट की परियोजनाएं..

2200 मेगावाट की 20 जल विद्युत परियोजनाएं अभी तक केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के कागजों में उलझी हुई हैं। इन परियोजनाओं से मिलने वाली बिजली से राज्य को काफी राहत मिल सकती है। इसी प्रकार करीब 2457 मेगावाट की बिजली परियोजनाएं पर्यावरणीय बंदिशों से घिरी हुई हैं। हालांकि राज्य में वर्तमान में करीब 2300 मेगावाट की पांच जल विद्युत परियोजनाओं पर काम चल रहा है।